बाड़ाईदगाह मदरसा (मदरसा तंज़ीमिया बाड़ाईदगाह)

26 Aug

मदरसा तंज़ीमिया की शुरुआत कैैसे ?

तंज़िमिया की शुरुआत की जब खोज की गई तो इसके बारे में एक भी लिखित स्रोत हमें नहीं मिला कि मदरसे की शुरुआत कैसे और कब हुए।
फिर हम इसके बारे में जानने के लिए इस मदरसे के बानहीं मरहूम मौलाना इब्राहिम के पुत्र महमूद पाशा और तौहीद पाशा से संपर्क किया उनसे जब मैंने पूछा कि क्या आपके पास मदरसा के स्थापित होने से संबंध कोई लिखित स्रोत है ?उन्होंने उत्तर दिया इस तरह का कोई भी स्रोत हमारे पास नहीं है। फिर महमूद साहब से पूछा गया कि क्या आपको इससे संबंधित कुछ याद है? तो उन्होंने कहा हां मदरसा का स्थापना मेरे वालिद साहेब मरहूम मोलाना इब्रााहीम साहेब ने 1920ई.में अपने ननिहाल से ज़मीन लेकर एक मकतब कायम किए थे । कुछ दिनों बाद वहां एक जलसा हुआ उसमें बड़े लोगों ने तय किया कि यहां एक बड़ा तालिमी एदारा होना चाहिए । फिर लोगों की मदद से तनज़ीमियां कायम हुआ और 1925 ईस्वी में मदरसे को सरकारी मंजूरी भी मिल गई।

मदरसा को कायम करने और आगे बढ़ाने वाले लोग

मरहूम मौलाना के पुत्र तोहीद पाशा ने बताया कि वालिद साहब के अलावा मदरसा को स्थापित करने में कुछ और लोग थे जो गर्मजोशी के साथ मदद किया। उन्होंने याद करके कुछ का नाम लिया वह नाम इस प्रकार हैं बदरूल करीम मिल्की जनाब हमीद साहेब व लतीफ साहब छप रैली हाजी वाहिद साहब व रफ़ीक साहब हक्का ऑडिटर बशारत साहेब दुबैली और जनाब एनुउल हक साहब नेमवा और कहा कि इनके अलावा और भी लोग थे जो उनके साथ दिए थे वह हमें याद नहीं है

बाड़ा ईदगाह या बड़ा ईदगाह

महमूद साहब से मैंने जानने की कोशिश की कि बड़ा ईदगाह का क्या मतलब ?उसने हंस कर जवाब दिया कि इसके पीछे एक छोटी सी कहानी है। वह कहानी यह है असल में मदरसे के अहाते में एक ईदगाह है । बड़ा होने की वजह से लोग बड़ा ईदगाह कहते थे और मदरसे के नाम के साथ जोड़कर” तंजीमया बड़ा ईदगाह” नामक मोहर बनाने के लिए भेजा गया जब मोहर बनकर आया तो उसमें ‘बड़ा ‘के जगह’ बाड़ा’ लिखा गया था। उस गलती का सुधार दोबारा नहीं हुआ जो आज भी बड़ा ईदगाह के जगह बाड़ा इदगाह है।

जब मदरसा बंद होने पर आ गया

मरहूम मौलाना इब्राहिम साहब उर्दू ,अरबी और फारसी के विद्वान थे मजमूननिगार और शायर भी थे वे किशनगंज से उर्दू में आईना नामक एक अखबार निकालते थे उस सिलसिले में उसका रहना सहना भी वहीं होने लगा 1930 ईस्वी के लगभग मदरसा तंजीम मियां की स्थिति और व्यवस्था चरमरा गया मौलाना जब वापस घर आए तो उसने मदरसा की स्थिति देखकर गुस्सा आया और वह यही रहने का फैसला किया मदरसा को संभाले और उसे नई ऊंचाई तक ले गए

कहां से बच्चे पढ़ने आते थे

इस बारे में लोगों को कहना है की मदद से में आसपास के बच्चे तो पढ़ते ही थे लेकिन सबसे ज्यादा बच्चा अररिया किशनगंज कटिहार से पढ़ने आते थे

रहने का व्यवस्था

रहने की व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त की तो पता चला है की मदद से मैं एक बहुत बड़ा हॉस्टल था जिसमें दूर के छात्र यहां रहते थे और फ्री में खाना पीना खाते थे इनके अलावा यहां एक और व्यवस्था प्रचलित था जो बहुत नायाब था । हॉस्टल में जगह नहीं मिलने के कारण आसपास के लोग अपने घरों में छात्र में को फ्री में रखते थे उसके बदले में उससे अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कहते थे इस बात की पुष्टि मैंने हाजी मकसूद साहेब से भी की उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था यहां था और मेरे यहां भी मेरे वालिद साहब कुछ बच्चे को रखते थे। मदरसे में पढ़ने लिखने के लिए एक पुस्तकालय था जिसमे दो हज़ार से भी ज़्यादा पुरानी किताबें थी अब न पुस्तकालय है न ही पुस्तक ।

मदरसा तंजीमियां का अहमियत

मदरसा तंजीम या अपने समाज को आगे बढ़ाने की एक रोशनी भी बेरोजगारों को रोजगार के लायक बनाया यहां के छात्र प्रोफेसर शिक्षक और अलग-अलग पोस्ट पर काबिज है और आज भी इस इलाके में जितने भी सरकारी मुस्लिम शिक्षक हैं उसमें आधे से ज्यादा तंज़ीमिया मदरसा के ही छात्र रहे हैं।
सरकार और समाज को इस मदरसे की अहमियत समझना होगा इसे आगे बढ़ाने का प्रयास करना होगा जिससे हमारे समाज की भलाई हो सके

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