भगत सिंह और उसके जीवन की परिचय,शिक्षा, आन्दोलन और मृत्यु का कारण..

29 May
शहीद भगत सिंह

जन्म:            27 सितम्बर, 1907

निधन:          23 मार्च, 1931

जन्मस्थल :   गाँव बावली, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में)

मृत्युस्थल:    लाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान में)

आन्दोलन:    भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम

शहीद भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे! भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद व अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने देश की आजादी के लिए शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया!

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को बंगा गांव जिला लायलपुर (पंजाब) में हुआ था! अब यह पाकिस्तान में है! भगत सिंह सीख जाति के थे! भगत सिंह जी के जन्म के समय उनके पिता सरदार किशन सिंह जी जेल में थे| भगत जी के घर का माहौल देश प्रेमी था| उनके चाचा जी श्री अजित सिंह जी स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी| उनके साथ सैयद हैदर रजा भी

भगत सिंह के माता का नाम विद्यावती कौर और पिता का नाम सरदार किशन सिंह था! यह एक सिख परिवार से थे!


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भगत सिंह ने देश के लिए क्या किया?

अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 ईस्वी को हुए जालियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था!
लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी! उस समय भगत सिंह करीब 12 वर्ष के थे! जब जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था! इसकी खबर सुनकर भगत सिंह जालियांवाला बाग पहुंच गए!
गांधीजी का असहयोग आंदोलन शुरू होने के बाद भगत सिंह ने गांधी जी के अहिंसात्मक तरीकों और क्रांतिकारियों के हिंसक आंदोलन मैं से अपने लिए रास्ता खोजने लगे!
गांधी जी का असहयोग आंदोलन रद्द कर दिया गया! जिसके कारण उनमें थोड़ा रोष उत्पन्न हुआ! पूरे राष्ट्र की तरह भगत सिंह भी महात्मा गांधी का सम्मान करते थे!
भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी की तरह अहिंसात्मक आंदोलन की जगह हिंसात्मक क्रांति का मार्ग अपनाना अच्छा नहीं समझा!
भगत सिंह ने जुनून मैं भाग लेना प्रारंभ किया! और कई क्रांतिकारी दलों के सदस्य बने! भगत सिंह के दल के प्रमुख क्रांतिकारियों में चंद्रशेखर आजाद सुखदेव राजगुरु बगैरा थे! काकोरी कांड में 4 क्रांतिकारियों को फांसी और 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह इतने भरके कि उन्होंने 1928 में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में विलय कर दिया! और उसे एक नया नाम दिया! हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन! 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए भयानक प्रदर्शन हुए!
इन प्रदर्शन मैं जितने भी लोग थे! भाग लेने वाले पर लाठीचार्ज हुई! इस लाठी चार्ज से आहत होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई!
शहीद भगत सिंहकार्ल मार्क्स के सिद्धांतों से उनका ताल्लुक था! और उन्हीं विचारधारा को भगत सिंह आगे बढ़ा रहे थे! भगत सिंह समाजवाद के पालन करने वाले थे!
शहीद भगत सिंह चाहते थे इसमें कोई खून खराबा ना हो! अंग्रेजो तक उनकी आवाज पहुंचे! प्रारंभ में उनके दल के लोग ऐसा नहीं सोचते थे! पर अंत में सर्वसम्मति से भगत सिंह तथा बूटकेस्वर दत्त का नाम चुना गया!

साइमन कमीशन के खिलाफ फ्रंट साइमन कमीशन के खिलाफ मोर्चा

30 अक्टूबर 1928 को, लाला लाजपत राय ने सभी दलों के साथ लाहौर रेलवे स्टेशन का एक मोर्चा निकाला। यह मोर्चा साइमन कमीशन के विरोध में किया गया था। इस मोर्चे को रोकने के लिए, पुलिस ने लाठी चार्ज किया, जिसमें लाला लाजपत राय को बहुत चोटें आईं, जिसके कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई।

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, भगत सिंह ने जेम्स ए। स्कॉट को मारने की योजना बनाई, जो ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक थे, लेकिन गलती से जेपी सॉन्डर्स, सहायक पुलिस अधीक्षक की मृत्यु हो गई। भगत सिंह लाहौर से भाग गए ताकि कोई उन्हें पहचान न सके और उन्होंने अपनी दाढ़ी भी काट ली

भगत सिंह की मृत्यु कब हुई और कैसे हुई?

26 अगस्त 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129,302 तथा विस्फोट पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया गया! 7 अक्टूबर 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया! जिसमें भगत सिंह सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई! फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई! इसके बाद भगत सिंह की फांसी की माफी के लिए प्रीवी परिषद मैं अपील दायर की गई लेकिन यह अपील 10 जनवरी 1921 को रद्द कर दी गई! भगत सिंह की फांसी की सजा माफ करवाने के लिए महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात की! 18 फरवरी 1931 को आम जनता की ओर से सजा माफी के लिए अपील दायर की! यह सब कुछ भगत सिंह के इच्छा के खिलाफ हो रहा था! क्योंकि भगत सिंह नहीं चाहते थे उनकी सजा माफ की जाए! 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7:33 पर भगत सिंह को तथा उसके दोस्तों को राजगुरु व सुखदेव को फांसी दे दी गई! और भगत सिंह हमेशा के लिए अमर हो गए!

शहीद भगत सिंह की फांसी……

भगत सिंह खुद अपने आप को शहीद कहा करते थे, जिसके बाद उनके नाम के आगे ये जुड़ गया. भगत सिंह, शिवराम, राजगुरु व सुखदेव पर मुकदमा चला, जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई, कोर्ट में भी तीनों इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते रहे.
भगत सिंह ने जेल में रहकर भी बहुत यातनाएं सहन की, उस समय भारतीय कैदियों के साथ अच्छा व्यव्हार नहीं किया जाता था, उन्हें ना अच्छा खाना मिलता था, ना कपड़े. कैदियों की स्थिति को सुधार के लिए भगत सिंह ने जेल के अंदर भी आन्दोलन शुरू कर दिया,
उन्होंने अपनी मांग पूरी करवाने के लिए कई दिनों तक ना पानी पिया, ना अन्न का एक दाना ग्रहण किया. अंग्रेज पुलिस उन्हें बहुत मारा करती थी, तरह तरह की यातनाएं देती थी, जिससे भगत सिंह परेशान होकर हार जाएँ, लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी. 1930 में भगत जी ने Why I Am Atheist नाम की किताब लिखी.

शहीद भगत सिंह द्वारा लिखी गई कविता

“इतिहास में गूँजता एक नाम हैं भगत सिंह
शेर की दहाड़ सा जोश था जिसमे वे थे भगत सिंह
छोटी सी उम्र में देश के लिए शहीद हुए जवान थे भगत सिंह
आज भी जो रोंगटे खड़े करदे ऐसे विचारो के धनि थे भगत सिंह ..”

 

भगत सिंह अनमोल वचन (Bhagat Singh Quote )

 Bhagat Singh Quote 1:
प्रेमी, पागल एवम कवि एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते हैं अर्थात सामान होते हैं

Bhagat Singh Quote 2:

मेरी गर्मी के कारण राख का एक-एक कण चलायमान हैं मैं ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी स्वतंत्र हैं .

Bhagat Singh Quote 3:

यदि बेहरों को सुनाना हैं तो आवाज तेज करनी होगी . जब हमने बम फेका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने का नहीं था . हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेका था . ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा .

Bhagat Singh Quote 4:

किसी को “क्रांति” को परिभाषित नहीं करना चाहिए . इस शब्द के कई अर्थ एवम मतलब हैं जो कि इसका उपयोग अथवा दुरपयोग करने वाले तय करते हैं. 

Bhagat Singh Quote 5 :

क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह आवश्यक नहीं . यह बम और पिस्तौल का राह नहीं हैं . 

Bhagat Singh Quote 6 :

सामान्यत: लोग परिस्थती के आदि हो जाते हैं और उनमे बदलाव करने की सोच मात्र से डर जाते हैं . अतः हमें इस भावना को क्रांति की भावना से बदलने की आवश्यकता हैं.

Bhagat Singh Quote 7 :

अहिंसा को आत्म विश्वास का बल प्राप्त हैं जिसमे जीत की आशा से कष्ट वहन किया जाता हैं लेकिन अगर यह प्रयत्न विफल हो जाये तब क्या होगा ? तब हमें इस आत्म शक्ति को शारीरक शक्ति से जोड़ना होता हैं ताकि हम अत्याचारी दुश्मन की दया पर न रहे .

भगत सिंह, गाँधी जी के अहिंसा आंदोलन से अलग हुए, Bhagat Singh Seperated from Gandhi Ji’s Non-Violence Movement

भगत सिंह के परिवार के लोग महात्मा गाँधी के विचारो से बहुत प्रेरित थे और स्वराज को अहिंसा के माद्यम से पाने को सही मानते थे। वो साथ ही भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस और उनके असहयोग आन्दोलन का भी समर्थन करते थे। पर जब चौरी-चौरा के हिंसक घटनाओं के बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया तब भगत सिंह गाँधी जी से नाराज़ हुए और वो गांधी जी अहिंसा आन्दोलन से अलग हो गए।

जब वे अपनी ग्रेजुएशन की पढाई कर रहे थे तो उनके माता-पिता ने उनका विवाह करवाने का सोचा पर उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि – अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ तो मेरी पत्नी की मौत हो जाएगी। उसके बाद वो कानपूर चले गए।
मार्च 1925 में यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित हो कर, नौजवान भारत सभा का निर्माण किया गया जिसके सचिव भगत सिंह थे। भगत सिंह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े अपने साथी क्रांतिकारि चन्द्र शेखर आज़ाद और सुखदेव के साथ।

जब उनके माता पिता ने उन्हें आश्वासन दिया की वो उनको विवाह के लिए मजबूर नहीं करेंगे तो वो वापस अपने घर लौट गए।

भगत सिंह से जुड़े रोचक तथ्य (Bhagat Singh के बारे में रोचक तथ्य)

  • लाहौर षडयंत्र के बाद लाहौर से उनके जाने की कहानी दिलचस्प है क्योंकि तब उन्होंने वही किया था जो सिखों के इतिहास में शायद ही किसी ने किया हो, उन्होंने अपनी सिख परंपरा को तोड़ दिया, अपने बाल मुंडवा लिए और अपनी दाढ़ी हटा ली। पुलिस उसे पहचान नहीं सकी, वह अंग्रेजी कपड़े पहने एक अधिकारी के रूप में ट्रेन के माध्यम से लाहौर से चला गया।
  • भगत सिंह पढ़ने के शौकीन थे और यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलन के बारे में पढ़ते रहे, वे फ्रेडरिक एंगेल्स और कार्ल मैक्स के विचारों से बहुत प्रभावित थे, उन्हें पढ़कर उनके राजनीतिक विचारों का विकास हुआ और उनके दिमाग में समाजवादी विचार थे। को प्रोत्साहित किया गया। उन्होंने “वीर-अर्जुन” नामक एक समाचार पत्र भी लिखा।
  • भगत सिंह ने स्पष्ट कहा था कि मेरा जीवन मेरे जीवन की तुलना में अंग्रेजों के लिए अधिक खतरनाक साबित होगा, मेरे सिद्धांत लाखों भारतीयों तक पहुंचेंगे और वे इस लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे। देश में क्रांति के लिए, मैं अपनी फांसी तक इंतजार करूंगा, मैं उस दिन का इंतजार करूंगा जब मैं अपनी फांसी पर झूलता हुआ देखूंगा, मेरे भाई और बहनें अंग्रेजों को नष्ट करने के लिए और अधिक दृढ़ होंगे।
  • इन शब्दों को सुनकर, उनकी माँ ने उन्हें संदेश दिया कि “मेरा बेटा अपने सिद्धांतों को कभी नहीं बदलेगा, अपनी आत्मा को मत खोना, आपकी मृत्यु को कई पीढ़ियों तक याद किया जाएगा, आपके बलिदान का सदियों तक सम्मान किया जाएगा, किसी को भी माँ नहीं मिल सकती है।” आप से अच्छा बेटा, कोई माँ मेरी तरह गर्वित नहीं हो सकती, आपकी आवाज़ “इंकलाब ज़िन्दाबाद” पूरे देश में गूंजती है। ”
    अपने अंतिम दिनों में, उन्होंने अपनी माँ को एक पत्र लिखा था और कहा था, “रोओ मत, माँ, मैं एक साल के भीतर फिर से अंग्रेजों को भारत से भगा दूंगा।”
  • उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन लेनिन और कई अन्य पुस्तकों को पढ़ने में बिताए, उनकी पढ़ने की गति बहुत अच्छी थी, वे इतनी तेजी से सभी पुस्तकों को पढ़ते थे कि जेल वार्डन के लिए नई पुस्तकों की व्यवस्था करते थे। यह मुश्किल भी हुआ करता था।
    उसे फांसी के लिए तैयार होने के लिए कहा गया, भगत सिंह ने बिना किसी डर के जवाब दिया, “क्या मैं अपनी किताब खत्म कर सकता हूं ??” जेल के वार्डन उसकी प्रतिक्रिया से हैरान थे, उसने पहले ऐसा हीरो नहीं देखा था, वह उसे फांसी के कमरे में ले गया और उसके दोस्त राजगुरु और सुखदेव उसे वहां देखकर मुस्कुरा रहे थे।
  • उनकी शहादत के बाद, गांधीजी और नेहरूजी के विरोध में सैकड़ों लोग कांग्रेस कार्यालय के बाहर पहुंचे थे, क्योंकि गांधीजी ने भगत सिंह और उनके दोस्तों की फांसी को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। बचाने के लिए कई प्रयास किए गए
    2008 में इंडिया टुडे में हुए एक सर्वेक्षण में, भगत सिंह को प्रमुख स्थान मिला, जिसने सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी को पीछे छोड़ दिया।
  • सिख परिवार में पैदा होने के बावजूद, भगत सिंह एक नास्तिक थे, हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद उनमें यह भावना विकसित हुई। सिंह का मानना ​​था कि स्वतंत्रता के रूप में मूल्यवान धन केवल शुद्ध रूप में साम्राज्यवाद की शोषणकारी प्रकृति को मिटाकर प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि रूस में बोल्शेविक क्रांति के समान सशस्त्र क्रांति के माध्यम से इस तरह के बदलाव को लाया जा सकता है और इस क्रम में उन्होंने “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा दिया!

मैं नास्तिक क्यों हूं?

मुख्य लेख: मैं नास्तिक क्यों हूँ? -भगत सिंह

मैं नास्तिक क्यों हूं ’भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह द्वारा लिखा गया एक लेख है, जिसे उन्होंने लाहौर की केंद्रीय जेल में अपने बंदी जीवन के दौरान लिखा था। यह लेख 27 सितंबर 1931 को लाहौर के अखबार ‘द पीपल’ में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में भगत सिंह ने ईश्वर की मौजूदगी और इस दुनिया के निर्माण, मनुष्य के जन्म, ईश्वर की कल्पना पर कई तार्किक सवाल उठाए हैं। मनुष्य के मन के साथ-साथ मनुष्य की विनम्रता, उसके शोषण, दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्ग भेदभाव की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है। यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में से एक रहा है!

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