महात्मा गांधी जी के असहयोग आंदोलन का महत्व : Asahyog andolan
असहयोग आंदोलन:
असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 ईस्वी में हुई थी और इसका उद्देश्य अहिंसा के जरिए भारत में ब्रिटिश शासक का विरोध करना था!
इसके अंतर्गत तय किया गया कि विरोध प्रदर्शनकारी ब्रिटेन के माल को खरीदने से इंकार करेंगे और अस्थाई हस्तशिल्प की वस्तुओं का इस्तेमाल करेंगे तथा शराब की दुकानों के आगे बढ़ने देंगे ऐसा के विचार और गांधी जी के कुशल नेतृत्व मैप करोड़ों नागरिक भारत की स्वाधीनता के आंदोलन में शामिल हो गए!
1919 से 1922 के मध्य अंग्रेज हुकूमत के विरुद्ध दो सशक्ति जन आंदोलन चलाया गए जिसने भारत स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत सेना ने किस शर्त पर बेटी राज्य को योगदान दिया था! कि इसके बाद बेटी राज्य भारत की जनता को कुछ राजनीतिक अधिकार सौंप देंगे लेकिन कूटनीति का सहारा लेते हुए ब्रिटिश शासकों ने भारत के सहयोग का जवाब रौलट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड ,हंटर रिपोर्ट आदित्य रूप में दिया अंग्रेज द्वारा भाग्य जनमानस की चाकू घुसाने पर गांधी क्षुबोध होकर 1920 में एक और तो कैसरे ए हिंद की उपाधि लौटा दी और साथ ही सत्याग्रह आंदोलन के जरिए असहयोग आंदोलन का सूत्रपात कर दिया!
इस आंदोलन में उन्होंने भारतीय जनता से निम्न प्रकार से सहयोग और ब्रितानी सरकार के प्रति और सहयोग की मांग की
1) सभी सरकारी शिक्षक संस्थाओं का बहिष्कार
2) सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र
3) अंग्रेजी सरकार द्वारा करवाए जाने वाले चुनाव का बहिष्कार
4) सरकारी अदालतों का त्याग
5) विदेशी वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार
6) सरकारी उत्सवों से इनकार
7)भारतीय मजदूरों का मेसोपोटामिया जाने से इनकार
गांधी जी ने कहा था कि यदि असहयोग की गठन ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत के 1 वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा गांधीजी के इस आंदोलन ने अंग्रेजी साम्राज्य को हिला कर रख दिया था!
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असहयोग आंदोलन के कुछ प्रस्ताव:
- अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को वापस करना.
- सिविल सर्विस, सेना, पुलिस, कोर्ट, लेजिस्लेटिव काउंसिल और स्कूलों का बहिष्कार।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
- यदि सरकार अपनी दमनकारी नीतियों से बाज न आये, तो संपूर्ण अवज्ञा आंदोलन शुरु करना.
शहरों में आंदोलन:
शहरों में मध्य-वर्ग से आंदोलन में अच्छी भागीदारी हुई।
हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने इस्तीफा दे दिया और वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी!
मद्रास को छोड़कर अधिकांश राज्यों में काउंसिल के चुनावों का बहिष्कार किया गया। मद्रास की जस्टिस पार्टी में ऐसे लोग थे जो ब्राह्मण नहीं थे। उनके लिए काउंसिल के चुनाव एक ऐसा माध्यम थे जिससे उनके हाथ में कुछ सत्ता आ जाती; ऐसी सत्ता जिसपर केवल ब्राह्मणों का निय़ंत्रण था।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ, शराब की दुकानों का घेराव किया गया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। 1921 से 1922 तक विदेशी कपड़ों का आयात घटकर आधा हो गया। आयात 102 करोड़ रुपए से घटकर 57 करोड़ रह गया। विदेशी कपड़ों के बहिष्कार से भारत में बने कपड़ों की मांग बढ़ गई।
परिणाम
- असहयोग आन्दोलन ने देश की जनता को आधुनिक राजनीति से परिचय कराया आरै उसमें आजादी की इच्छा जगायी.
- इसने यह दिखाया कि भारत की दीन-हीन जनता भी आधुनिक राष्ट्रवादी राजनीति की वाहक हो सकती है.
- यह पहला अवसर था जब राष्ट्रीयता ने गांवों, कस्बों, स्कूलों आदि सबको अपने प्रभाव में ले लिया.
- हालाँकि इसकी उपलब्धियाँ कम थीं, लेकिन जो वुफछ हासिल हुआ, वह आगामी संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायक हुआ.
- बड़े पैमाने पर मुसलमानों की भागीदारी और सांप्रदायिक एकता इस आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी.
- मुसलमानों की भागीदारी ने ही इस आन्दोलन को जन आन्दोलन का स्वरूप दिया.
- असहयोग आन्दालेन का एक प्रमुख परिणाम यह हुआ कि भारतीय जनता के मन से भय की भावना समाप्त हो गयी.