सीमांचल के भूजल में जान लेवा तत्व मौजूद
आर्सेनिक एक प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाला तत्व है जो चट्टानों, मिट्टी और उनके संपर्क में आने वाले पानी में पाया जाता है। ये गंधहीन स्वाद हीन उपधातु है। इसका परमाणु संख्या 33 और परमाणु भार 91 है। आवर्त सरणी में vA समूह का सदस्य है। ये 26वां ऐसा तत्व है जो पृथवी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
आर्सेनिक क्या है?
आर्सेनिक को एक जहरीले तत्व के रूप में मान्यता दी गई है और इसे मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा माना जाता है।
भूजल में आर्सेनिक की घटना पहली बार 1980 में भारत में पश्चिम बंगाल में हुई थी। पश्चिम में
बंगाल में कहां-कहां आर्सेनिक से प्रभावित है
बंगाल, 8 जिलों में 79 ब्लॉकों में 0.05 मिलीग्राम / एल की अनुमेय सीमा से परे आर्सेनिक है। सबसे ज्यादा प्रभावित
क्षेत्र मालदा, मुर्शिदाबाद, नादिया, उत्तर के जिलों में भागीरथी नदी के पूर्वी किनारे पर हैं
24 परगना और दक्षिण 24 परगना और हावड़ा, हुगली और बर्धमान जिलों के पश्चिमी भाग।
भूजल में आर्सेनिक की घटना मुख्यतः एक्वीफर्स में 100 मीटर गहराई तक होती है। गहरा है
एक्वीफर्स आर्सेनिक संदूषण से मुक्त हैं।
पश्चिम बंगाल के अलावा, आसम के राज्यों में भूजल में आर्सेनिक संदूषण पाया गया है,
बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटकपंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल।
बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश राज्यों में आर्सेनिक की घटना जलोढ़ संरचनाओं में होती है लेकिन
छत्तीसगढ़ राज्य में, यह ज्वालामुखीय चट्टानों में विशेष रूप से एन-एस ट्रेंडिंग डोंगरगढ़ तक ही सीमित है-
कोटड़ी प्राचीन दरार क्षेत्र। इसकी सूचना गोलाघाट, जोरहाट, लखीमपुर, नागांव, नलबाड़ी,
सिबसागर, असम का सोनितपुर जिला
आर्सेनिक हॉट स्पॉट (हॉट स्पॉट) दिखाने वाला मानचित्र वे स्थान हैं जहां जमीन में आर्सेनिक एकाग्रता है
बिहार में सीमांचल की क्या स्थिति है?
हिमालय से निकलने वाली नदियां गंगा और कोसी के आस-पास बसव ज़िलों के भूमिगत जल में अर्सेनिक से संदूषित है। जिसमे प्रमुख ज़िला निम्न है।
कटिहार,भागलपुर ,पूर्णिया, मधेपुरा, दरभंगा, समस्तीपुर बेगुसराय, खगरिया, लखीसराय ,वैशाली, मुज़फ्फरपुर पु.चंपारण, प.चंपारण ,गिपलगजं, सीवान, भोजपुर और सहरसा इत्यादि
इस इलाके में आर्सेनिक आया कैसे?
वैसे तो पृथवी के निचे प्रकिर्तिक रूप से भूवैज्ञानिक प्रकिर्या द्वारा जलीय चट्टानी परत आर्सेनिक से संदूषित हो जता है। लेकिन विशेष कर गंगा के मैदानी भाग के भूमिगत जल में आर्सेनिक की अधिक उपस्थिति के क्या कारण? जानकारों का मानना हैकि इस इलाका में आर्सेनिक की अधिक उपस्थिति के लिए ज़िम्मेदार हिमालय है। हिमालय से निकलने वाली नदियां हमेशा अपना मार्ग बदलती रहती है। पहले जहां नदी हुवा करता था वहां अब गावँ बस गया है। नदी के साथ जल में जो आर्सेनिक हिमालय से आया वो भूमिगत जल में समा गया। उस इलाके में जहाँ पहले नदी बहती थी वहां के गावँ के भूमिगत जल में आर्सेनिक की उपस्थिति है।
क्या सीमांचल के भी भूमिगत जल में आर्सेनिक संदूषण है
?
सीमांचल के दो ज़िले कटिहार और पूर्णिया भी आर्सेनिक से प्रभावित है। सब से ज़्यादा कटिहार के प्रखंड आर्सेनिक संदूषण से प्रभावित हैं उसमे अमदाबाद ,मनिहारी,कुर्सेला,समेली प्रखण्ड के गांव अधिक प्रभावित है।
पूर्णियां ज़िला का कोनसा गांव अर्सेनिक संदूषण से प्रभावित है
छोटकी मझवा,अंदेली हाट,राजवारा बरहमपुर ये सब बस्ती पूर्णिया पूर्व प्रखंड में स्थित है। जल संरक्षण मंत्रालय के अध्यन के रिपोर्ट अनुसार उपर्युक्त गांव के भूमिगत जल में आर्सेनिक संदूषण है।
आर्सेनिक संदूषण से होने वाली समस्याएं
आर्सेनिक के ज़्यादा सेवन से केंसर ,त्वचा फटने जैसी बिमारी गर्भवती महिला के उस पानी केप्रयोग से अविकसित बच्चा का जन्म होता है।
उपाय
संविधान से हमें मूल अधिकार में जीने का अधिकार भी मिला है। सत्य ये है की जल ही जीवन है। जल अगर आर्सेनिक से संदूषित हो तो मृत्यु अप्राकृतिक होगी। मतलव ये की स्वच्छ जल ही जीवन है। इसे उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी सरकार की है।
दूसरी बात ये है कि इस क्षेत्र के सभी नागरिक को प्रशाशन से ये दबाव बनाना चाहिए की हर गांव का भूमिगत जल में आर्सेनिक की उपस्थिति की जाँच हो । इससे हमें कमसेकम संदूषित जल वाले गांव का पता चल जाएगा और उसका उपाय ढूंढा जाए गा।
तीसरी बात ये है की साकार जल्द से जल्द इसका तकनिकी हल खोजे।