Shab-E-Qadr 2024: कब है शब-ए-कद्र? महत्व,फ़ज़ीलत

25 Oct

शबे क़द्र और इस की रात का महत्वः (शबे क़द्र(Shab-E-Qadr) की फ़ज़ीलत हिंदी में)

इस्लाम में शब-ए-कद्र (Shab-e-Qadr)पवित्र रातों में एक है. इसे लैलातुल कद्र के रूप में भी जाना जाता है. अंग्रेजी में इसे नाइट ऑफ डिक्री, नाइट ऑफ पावर, नाइट ऑफ वैल्यू या नाइट ऑफ मेजर भी कहा जाता है. इस्लामी मान्यता के अनुसार इस रात पहली बार पवित्र क़ुरआन को स्वर्ग से दुनिया में भेजा गया था. इस्लामी आस्था के अनुरूप लैलातुल कद्र की रात को पैगंबर मोहम्मद कुरान के पहले छंद का पता चला था. शब-ए-क़द्र की सही तारीख ज्ञात नहीं है. हालांकि कई मुस्लिम स्त्रोतों के शब-ए-क़द्र, रमजान या रमजान के आखिरी दस दिनों की विषम संख्या वाली रातों (21, 23, 25, 27वें या 29वें) में से एक पर पड़ता है!

शबे क़द्र का अर्थ:

रमज़ान महीने में एक रात ऐसी भी आती है, जो हज़ार महीने की रात से बेहतर है। जिसे शबे क़द्र कहा जाता है। शबे क़द्र का अर्थ होता हैः “सर्वश्रेष्ट रात“, ऊंचे स्थान वाली रात”, लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात।

शबे क़द्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है, जिस के एक रात की इबादत हज़ार महीनों (83 वर्ष 4 महीने) की इबादतों से बेहतर और अच्छा है। इसी लिए इस रात की फज़ीलत क़ुरआन मजीद और प्रिय रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की हदीसों से प्रमाणित है।

 

Shab-e-qadr ya Laylatul Qadr namaz ka tarika

1- दो रकत नमाज ब-नियत नफिल पढ़ें। हर रकत में सूरे अलहमदो.. के बद सूरे इन्ना अनजलना.. और सौ बार सूरे इख्लास.. पढ़ें फिर दुआ मांगे।

2- चार रकत नफिल पढ़ें। सूरे अलहमदो.. के बाद हर रकत में तीन बार सूरे इन्ना.. और सात बार सूरे इख्लास.. पढ़ें। इसकी बरकत से अल्लाह मौत आसान कर देगा और कब्र का अजाब दूर करेगा।

3- दो रकत नफिल पढ़ें। हर रकत में अलहमदो.. के बाद सात बार सूरे इन्न.. और सात बार सूरे इख्लास पढ़ें। नमाज मुकम्मल करके इसतखफार और दरूद शरीफ पढ़ें। इसकी बरकत से पढ़ने वाले को और उसके मां-बाप को खुदा बख्श देगा।

4- सुबह सादिक के करीब चार रकत नमाज नफिल एक सलाम से पढ़ें। हर रकत में अलहमदो.. के बाद तीन बार सूरे इन्ना.. और पांच बार सूरे इख्लास पढ़ें। नमाज मुकम्मल होने के बाद सजदा करें और सजदे में 41 बार सुब्हान अल्लाह कहें। हर जायज हाजत (जरूरत) पूरी होगी और दुआ कुबूल हो

शब-ए-क़द्र का महत्व (Importance is Saba qadr)

शबे क़द्र  मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण रात होती है, क्योंकि इसी रात पवित्र क़ुरआन को पृथ्वी पर भेजा गया था. लैलातुल कद्र ने पवित्र क़ुरआन में भी उल्लेख किया है, ‘अल-कद्र’ की रात को एक हजार महीने से बेहतर बताया गया है. पैगंबर मोहम्मद ने भी इस रात के बारे में निम्नलिखित हदीसों। में से एक में कहा था कि जो कोई भी अल्लाह की इबादत ईमानदारी और विश्वास के साथ कद्र की रात को सलाम पेश करता है, उसके सभी पापों को माफ कर दिया जाएगा.

शब-ए-क़द्र के दौरान जो मुसलमान ‌विशेष प्रार्थना करते हैं, कुरान पढ़ते हैं, और विशेष दुआ करते हैं, शब-ए-कद्र के खास दुआओं में से एक है अल्लाहुम्मा इनाका ‘अफुवुन तुहिबुल’ अफवाह फ’फु एनी (ऐ अल्लाह तू तू वो है जो बहुत माफ करता है, और माफ करना पसंद करता है, इसलिए मुझे माफ़ कर दे.)

शबे क़द्र( Shab-e-Qadr) की निशानीः

प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस रात की कुछ निशानी बयान फरमाया है। जिस के माध्यम से इस महत्वपूर्ण रात को पहचाना जा सकता है।

(1) यह रात बहुत रोशनी वाली होगी, आकाश प्रकाशित होगा, इस रात में न तो बहुत गरमी होगी और न ही सर्दी होगी बल्कि वातावरण अच्छा होगा, उचित होगा। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने निशानी बतायी है, जिसे सहाबी वासिला बिन अस्क़अ वर्णन करते है कि –

हदीस:  अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फरमायाः “शबे क़द्र रोशनी वाली रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और वातावरण संतुलित होता है और सितारे को शैतान के पीछे नही भेजा जाता।” (तब्रानी)

(2) यह ( Shab-e-Qadr) रात बहुत संतुलित वाली रात होगी। वातावरण बहुत अच्छा होगा, न ही गर्मी और न ही ठंडी होगी। हदीस रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसी बात को स्पष्ट करती है –

हदीस: “शबे क़द्र वातावरण संतुलित रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो लालपन धिमा होता है।” (सही- इब्नि खुज़ेमा तथा मुस्नद त़यालसी

(3) शबे क़द्र के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी धिमी होती है, सुर्य के रोशनी में किरण न होता है । जैसा कि उबइ बिन कअब वर्णन करते हैं कि –

हदीस: रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमायाः “उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी में किरण नही होता है।”

एक नेकी के बदले 70 नेकिया

वैसे तो पूरे रमजान में रहमतों और बरकतों की बारिश होती है। ये अल्लाह के रहेमान होने का सबूत है कि रमजान में एक नेकी के बदले 70 नेकियां हमारे  नामे-आमाल में जुड़ जाती हैं, हलाकि शब-ए-कद्र की खास रात में इबादत, तिलावत और दुआएं कुबूल होती हैं।

अल्लाह ताअला के हुजूर में रो-रोकर अपने गुनाहों की माफी तलब करने वालों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। इस रात खुदा ताअला अपने बंदो की नेक और जायज तमन्नाओं को पूरी फरमाते है। रमजान मे तरावीह पढ़ाने वाले हाफिज साहबान भी इसी रात में कुरआन मुकम्मल करते हैं। मुस्लिम महिलाएं भी अपने घरों में कुरआन की तिलावत इस रात मे मुकम्मल करती हैं।

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