तिरंगा: भारत का राष्ट्र ध्वज का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य
भारत का राष्ट्र ध्वज तिरंगा (tiranga) है! इसमें सामान अनुपात में तीन पट्टियां है! सबसे ऊपर में गहरा केसरिया रंग बीच में सफेद और सबसे नीचे हरा रंग है! ध्वज की लंबाई चौड़ाई का अनुपात 3:2 है! सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है!
इसका प्रारूप सारनाथ में अशोक के सिंह स्तंभ पर बने चक्र से लिया गया है! इसका व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर है! और इसमें 24 तीलियां हैं! राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन श्री पिंगली वेंकैया जी ने किया था! 22 जुलाई 1947 को भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप अपनाया! सबसे ऊपर केसरिया रंग देश की ताकत और बहादुरी को दर्शाता है! बीच में सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सच्चाई दर्शाता है! और नीचे हरा रंग देश की विकास और उर्वरक शक्ति को दर्शाता है!
राष्ट्र झंडा निर्दिष्टकरण के अनुसार के अनुसार झंडा खादी कपड़े मैं ही बनना चाहिए! यह एक विशेष प्रकार से काटे गए कपड़े से बनता है! जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था! इन सभी विशेषताओं को व्यापक रूप से भारत में सम्मान दिया जाता है! गांधी जी ने सबसे पहले 1921 इसवी में कांग्रेस से अपने झंडे की बात की थी! झंडे में दो रंग थे लाल रंग हिंदुओं के लिए! हरा रंग मुस्लिमों के लिए! बीच में एक चक्र था! बाद में अन्य धर्मों के लिए इसमें सफेद रंग जोड़ा गया!
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आजादी मिलने से कुछ दिन पहले संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज को संशोधित किया! इस झंडे में चरखे की जगह अशोक चक्र ली! झंडे की व्याख्या देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने फिर से की 21 फीट 14 फीट के झंडे पूरे देश में केवल 3 किलोमीटर मैं फेहराय जाते हैं!
1951 में पहली बार भारतीय मानक ब्यूरो ने पहली बार राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किए! 1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए! यह नियम बहुत ही कड़े हैं! झंडा केवल खादी या हाथ से काता हुआ कपड़ा का ही बना कपड़ा का उपयोग किया जाता है! यह धवज भारत के स्वतंत्रता काल में ही बनाया गया था!
1857 में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय भारत का झंडा बनाने की योजना बनी थी! लेकिन वह आंदोलन बिना समय के ही समाप्त हो गयाथा! उसके साथ ही वह योजना भी वर्तमान समय में पहुंचने से पहले भारतीय राष्ट्रध्वज अनेक पड़ाव गुजरा है! भारतीय कानून के अनुसार ध्वज को हमेशा गरिमा निष्ठा और सम्मान के साथ देखना चाहिए भारत की संहिता 2002 मैं पड़तिक और नामों के निवारण अधिनियम 1950 का अतिक्रमण किया अब वह ध्वज प्रदर्शन और उपयोग का नियंत्रण करता है!
सरकारी नियमों में कहा गया है की झंडे का स्पर्श कभी भी जमीन या पानी के साथ नहीं होना चाहिए! उसका प्रयोग मेजपोश के रूप में या मंच पर नहीं रखा जा सकता! ना ही किसी आधारशिला पर डाला जा सकता था! सन 2005 तक इसे पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था! 5 जुलाई 2005 को भारत सरकार ने संहीता में संशोधन किया! और झंडा को एक पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग किए जाने की अनुमति दी!
हालांकि इसका प्रयोग कमर से नीचे वाले कपड़े के रूप में नहीं किया जा सकता है! झंडे को जानबूझकर उल्टा नहीं किया जा सकता! कीसी में डूबाया नहीं जा सकता! फूलों की पंखुड़ियां के अलावा अन्य वस्तु नहीं रखी जा सकती! किसी प्रकार का सरनाम झंडे पर अंकित नहीं किया जा सकता है! झंडे को संभालने और फहराने के लिए अनेक नियमों का पालन करना चाहिए!
अगर खुले में झंडा फहराया जा रहा हो तो हमेशा सूर्योदय मे फहराया जाना चाहिए जाना चाहिए! और सूर्यास्त पर उतार देना चाहिए! चाहे मौसम की स्थिति कैसी भी हो कुछ विशेष परिस्थितियों में ध्वज को रात के समय सरकारी इमारत पर फेहराया जा सकता है! जब झंडा अन्य झंडों के साथ फेहराया जा रहा हो तो जैसे कॉरपोरेट झंडे विज्ञापन के बैनर पर हो तो नियम अनुसार अन्य झंडे अलग स्तंभ पर है तो राष्ट्र झंडा बीच में होना चाहिए! परेक्षकों के लिए सबसे बाई और होनी चाहिए! या अन्य झंडा में 1 चौड़ाई ऊंची होनी चाहिए!
तिरंगा झंडे का इतिहास History of the flag
देश का सबसे पहला राष्ट्रीय ध्वज वर्ष 1906 में बना। इसे कोलकाता के बागान चौक में फहराया गया था। इसमें केसरिया, पीला और हरा रंग था। इसमें आधे खिले कमल के फूल बने थे। साथ ही वंदे मातरम लिखा हुआ था। इससे पहले दो रंगों का ध्वज बना था।
इसे पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था। बाद में इसे बर्लिन के एक सम्मेलन में भी दिखाया गया था। इसमें तीन रंग थे। जबकि ऊपरी पट्टी पर कमल का फूल बना था। साथ ही सात तारे भी बने थे। इससे पहले 1904 में आजादी के लिए अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए ध्वज का निर्माण किया गया।
जिसे स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने बनाया था। बंगाल में एक जुलूस के दौरान विरोध जताने के लिए तीन रंगों वाले ध्वज का प्रयोग किया गया था। फिर नया राष्ट्रीय झंडा साल 1917 में सामने आया। इसमें 5 लाल और 4 हरी पट्टियां बनी हुई थी। इसके साथ सप्तऋषि के प्रतीक सितारे भी थे। इस झंडे को डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू आंदोलन के दौरान फहराया था।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का प्रगतिशील और अहम सफर 1921 से तब शुरू हुआ, जब सबसे पहले महात्मा गांधी जी ने भारत देश के लिए झंडे की बात कही थी और उस समय जो ध्वज पिंगली वैंकैया जी ने तैयार किया था उसमें सिर्फ दो रंग लाल और हरे थे।
तिरंगा झंडे के बीच में सफेद रंग और चरखा जोड़ने का सुझाव बाद में गांधी जी लाला हंसराज की सलाह पर दिया था। सफेद रंग के शामिल होने से सर्वधर्म समभाव और चरखे से ध्वज के स्वदेशी होने की झलक भी मिलने लगी। इसके बाद भी झंडे में कई परिवर्तन किए गए। यह ध्वज पहले अखिल भारतीय कांग्रेस के लिए बना था। उसके बाद राष्ट्रीय झंडा 1931 बनाया गया। इसे राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। गांधी जी के संशोधन के बाद ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियों के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र रखा गया। झंडे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया। भारतीय संविधान सभी में इसे 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकृति मिली।
भारतीय ध्वज (tiranga) का अर्थ और महत्व
तीन रंगों में होने की वजह से भारतीय ध्वज को तिरंगा भी कहते है। ख़ादी के कपड़ों, बीच में चक्र और तीन रंगों का इस्तेमाल कर भारतीय ध्वज को क्षितिज के समांतर दिशा में डिज़ाइन किया गया है। ब्रिटीश शासन से भारतीय स्वतंत्रता के परिणाम स्वरुप 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को स्वीकार किया गया था। इसकी लम्बाई और चौड़ाई का अनुपात क्रमशः २:३ होता है। आजादी और राष्ट्रीयता के प्रतीक के रुप में भारतीय ध्वज को बनाया और स्वीकार किया गया।
हमारे लिये भारतीय ध्वज का बहुत महत्व है। अलग-अलग विचारधारा और धर्म जैसै हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि का होने के बावजूद भी ये सभी धर्मो को एक राह पर ले जाता है और हमारे लिये एकता के प्रतीक के रुप में है। इसमें मौजूद तीन रंग और अशोक चक्र का अपना अर्थ है जो इस प्रकार है:
केसरिया रंग
राष्ट्रीय ध्वज ( तिरंगा ) का सबसे ऊपरी भाग केसरिया रंग है; जो बलिदान का प्रतीक है राष्ट्र के प्रति हिम्मत और नि:स्वार्थ भावना को दिखाता है। ये बेहद आम और हिन्दू, बौद्ध और जैन जैसे धर्मों के लिये धार्मिक महत्व का रंग है। केसरिया रंग विभिन्न धर्मों से संबंधित लोगों के अहंकार से मुक्ति और त्याग को इंगित करता है और लोगों को एकजुट बनाता है। केसरिया का अपना अलग महत्व है जो हमारे राजनीतिक नेतृत्व को याद दिलाता है कि उनकी ही तरह हमें भी किसी व्यक्तिगत लाभ की इच्छा के पूरे समर्पण के साथ राष्ट्र की भलाई के लिये काम करना चाहिये।
सफेद रंग
राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) के बीच का भाग सफेद रंग से डिज़ाइन किया गया है जो राष्ट्र की शांति, शुद्धता और ईमानदारी को प्रदर्शित करता है। भारतीय दर्शन शास्त्र के मुताबिक, सफेद रंग स्वच्छता और ज्ञान को भी दर्शाता है। राष्ट्र के मार्गदर्शन के लिये सच्चाई की राह पर ये रोशनी बिखेरता है। शांति की स्थिति को कायम रखने के दौरान मुख्य राष्ट्रीय उद्देश्य की प्राप्ति के लिये देश के नेतृत्व के लिये भारतीय राजनीतिक नेताओं का ये स्मरण कराता है।
हरा रंग
तिरंगे के सबसे निचले भाग में हरा रंग है जो विश्वास, उर्वरता ; खुशहाली ,समृद्धि और प्रगति को इंगित करता है। भारतीय दर्शनशास्त्र के अनुसार, हरा रंग उत्सवी और दृढ़ता का रंग है जो जीवन और खुशी को दिखाता है। ये पूरे भारत की धरती पर हरियाली को दिखाता है। ये भारत के राजनीतिक नेताओं को याद दिलाता है कि उन्हें भारत की मिट्टी की बाहरी और आंतरिक दुश्मनों से सुरक्षा करनी है।
अशोक चक्र – Ashoka Chakra
ध्वज में लगने वाला धर्म चक्र 3 री शताब्दी के मौर्य शासक सम्राट अशोक के सारनाथ स्तम्भ से लिया गया है। यह चक्र जीवन साइकिल (चक्र) और मृत्यु की गतिहीनता को दर्शाता है।
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज कोड में आज़ादी के बहुत सालो बाद बदलाव किया गया था, जिसमे भारत के नागरिको को अपने घर, ऑफिस और फैक्ट्री में स्वतंत्रता दिवस पर ध्वज फहराने की आज़ादी दी गयी। आज हम भारतीय शान से हमारे घर या ऑफिस पर कभी-कभी भारतीय ध्वज लहरा सकते है।
लेकिन यदि कोई नागरिक राष्ट्रध्वज का अपमान करते हुए पाया गया तो उसे दंड अवश्य दिया जाता है।
हम भारतीयों, मुस्लिम, क्रिस्चियन, पारसी और सभी धर्मो के लोगो के जीने और मरने के लिये एक ध्वज का होना बहुत जरुरी है। जिससे उनके देश का पता चल सके।” – महात्मा गांधी
ध्वज को फहराने से संबंधित कुछ नियम भी है, जो 26 जनवरी 2002 के कानून में बताये गए है। इसमें निचे दी गयी बाते शामिल है।
राष्ट्रिय ध्वज को फहरा समय क्या करना चाहिये:
राष्ट्रिय ध्वज (तिरंगा) को किसी भी शैक्षणिक संस्था (स्कूल, कॉलेज, स्पोर्ट कैंप, स्काउट कैंप इत्यादि) जगहों पर पुरे सम्मान के साथ फहरा सकते है। फहराते समय राष्ट्र वचन लेना भी बहुत जरुरी है।
सामाजिक, प्राइवेट संस्था या फिर किसी शैक्षणिक संस्था के सदस्य भी छुट्टी के दिन या फिर स्वतंत्रता दिवस पर पुरे सम्मान के साथ ध्वज फहरा सकते है।
सेक्शन 2 के तहत कोई भी प्राइवेट नागरिक सम्मान के साथ अपनी ईमारत में राष्ट्रिय ध्वज को लहरा सकता है।
राष्ट्रिय ध्वज को फहरा समय क्या नही करना चाहिये:
राष्ट्र ध्वज (तिरंगा) का उपयोग सांप्रदायिक लाभ, कपडे की दुकान या फिर कपड़ो के रूप में नही कर सकते। हो सके तो सूरज निकालने के बाद और डूबने से पहले तक ही इसे रहने देना चाहिये।
राष्ट्रिय ध्वज जमीन पर गिरा हुआ या जमीन को छुआ नही होना चाहिये और ना ही पानी में भीगा हुआ होना चाहिये। ध्वज कपड़ो की खुटी पर भी टंगा हुआ नही होना चाहिये। और ना ही रेल, बस के आगे या पीछे लगा हुआ होना चाहिये।
इस ध्वज से ऊँचा दूसरा कोई भी ध्वज नही होना चाहिये। बल्कि ध्वज के उपर फुल या फिर कोई वस्तु भी नही चाहिये। हम तिरंगे का उपयोग रिबन या फिर ध्वजपट के लिये भी नही कर सकते।
भारत का राष्ट्रिय ध्वज भारत के लोगो की आशा और प्रेरणा का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रिय ध्वज हमारे देश का गर्व है। पिछले पाँच दशको से बहुत से लोगो ने, बल्कि इंडियन आर्मी के नौजवानों ने भी तिरंगे की शान और सुरक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दी है। आज इन्ही लोगो की वजह से हमारा तिरंगा हवा में शान से फहराता है
भारतीय राष्ट्रिय ध्वज हमारा राष्ट्रिय गर्व है और किसी भी देश का राष्ट्रिय ध्वज उसका सबसे सम्माननीय प्रतिक होता है। बाद में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रिय ध्वज को केवल देश की आज़ादी नही बल्कि देश के लोगो की आज़ादी का प्रतिक बताया।
भारतीय ध्वज (तिरंगा) आचार संहित…
- राष्ट्रीय प्रतीक होने के नाते हर भारतीय इसका सम्मान करता है।
- आम लोगों के लिए भारतीय ध्वज संबंधी कुछ नियम बनाए गए हैं।
- राष्ट्रीय ध्वज को फहराते समय भगवा रंग सबसे उपर होना चाहिए।
- कोई भी ध्वज या प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज से उपर या दाहिनी ओर नहीं रखा जाना चाहिए।
- यदि राष्ट्रीय ध्वज के साथ अन्य ध्वज भी एक ही कतार में लगाने हांे तो उन्हें बांई ओर लगाना चाहिए।
- यदि राष्ट्रीय ध्वज को किसी परेड या जुलूस में थामा जाता है तो उसे दाहिनी ओर लेकर मार्च करना होता है। यदि दूसरे ध्वज भी साथ हांे तो उसे कतार के मध्य में रखना होता है।
- सामान्यतः राष्ट्रीय ध्वज को महत्वपूर्ण इमारतों पर फहराया जाता है, जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, सचिवालय, आयुक्त कार्यालय आदि।
- राष्ट्रीय ध्वज या उसकी नकल का इस्तेमाल व्यापार, व्यवसाय या पेशे के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय ध्वज को सूर्यास्त के समय उतारना आवश्यक है।
ध्वज संहिता के अनुसार भारत के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को कुछ महत्वपूर्ण दिन, जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और महात्मा गांधी के जन्मदिन के अलावा फहराने का अधिकार नहीं है। प्रसिद्ध उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने कार्यालय के भवन पर झंडा फहराने पर दी गई चेतावनी को कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने इसके खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की जो कि अभी विचाराधीन है, लेकिन फैसला आने तक कोर्ट ने आम लोगों को सम्मानजनक तरीके से ध्वज फहराने की अस्थाई अनुमति दी है।
रोचक तथ्य –
- राष्ट्रीय ध्वज ( tiranga) को 29 मई 1953 में दुनिया के सबसे उचें पर्वत माउंट एवेरेस्ट पर फ़हराया गया था.
- मैडम भीखाजी खामा पहली इन्सान है, जिन्होंने राष्ट्रीय ध्वज को विदेशी जमीन पर फ़हराया था.
- 1984 में राकेश शर्मा द्वारा इसे अंतरीक्ष पर फ़हराया गया.
- दिसम्बर 2014 में चेन्नई में 50 हजार लोगो ने राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) बनाकर एक रिकॉर्ड कायम किया था.
- दिल्ली के सेंट्रल पार्क में सबसे ऊँचा राष्ट्रीय ध्वज फ़हराया गया, जिसकी लम्बाई 90 फीट व् चोड़ाई 60 फीट थी.
हमें राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना चाहिए!