नई शिक्षा नीति मसौदा -2019
परिचय
किसी मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए सबसे आवश्यक शिक्षा होती है उसी प्रकार पूरे परिवार का विकास करना है तो आवश्यक है कि उस परिवार के सभी सदस्य शिक्षित हो और एक राज्य या देश एक परिवार की भांति है इसलिए उसका अगर आर्थिक राजनीतिक शैक्षिक और सामाजिक विकास करना है तो शिक्षा ही एक कुंजी है। शिक्षा देने के लिए एक बेहतर शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होती है जो देश और दुनिया की मांग को पूरा कर सकें।
वैश्वीकरण के बदलते दौर में स्थितियों के अनुसार शिक्षा व्यवस्था का मानकीकरण भी जरूरी है। 21वी सदी मैं भारत का वर्तमान शिक्षा व्यवस्था 20वीं सदी की यानी 1986 से संचालित है जो सिर्फ 1992 में संशोधित हुई थी।
शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता क्यों?
आज दुनिया 5जी की बात कर रही है मंगल पर बसने की बात कर रही है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात कर रही है लेकिन हमारे देश का शिक्षा व्यवस्था 1986 के हिसाब से ही चल रहा है ।तीन दशकों के दौरान अधिकांश विमर्श सिद्धांतों तथा तकनीकों के स्वरूप में गंभीर परिवर्तन हो चुका है जबकि हमारी शिक्षा पद्धति अभी भी 3 दशक पुरानी है। हमारे पाठ्यक्रम पुस्तकें के पठन-पाठन के तरीके तथा तकनीक लगभग अप्रचलित हो चुके हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम नए भारत के लिए बदलते इस दौर में अपने शिक्षा अस्था में वैश्विक मानकों के अनुसार जरूरी परिवर्तन की नीति निर्धारण कर सकें।
नई शिक्षा व्यवस्था की कमीटी का गठन
इस उद्देश्य हेतु 2017 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा डॉक्टर के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में नई शिक्षा नीति हेतु एक समिति गठित की गई जिसने हाल ही में 31 मई 2019 को अपनी सिफारिशें सौंपी
नई शिक्षा नीति की आवश्यकता क्यों?
उच्च शिक्षा
भारत कौशल रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों से निकलने वाले लोगों में से केवल 47% ही रोजगार की योग्य हैं ।इसका सामान्य मतलब है कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली इतनी अद्यतन नहीं है कि वह नवीन विकसित रोजगार के शत्रु के अनुसार मानव संसाधन तैयार कर सके ।उच्च शिक्षा में शोध एवं नवाचार की स्थिति अत्यंत दयनीय है। मसूदा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के अनुसार भारत में शोध एवं नवाचार पर जीडीपी का केवल 0.69% खर्च किया जाता है। उच्च शिक्षा तक के मामले में भी स्थिति अच्छी नहीं है ।जटिल संरचना तथा पर्याप्त एवं गुणवत्ता युक्त उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी इसका एक बड़ा कारण है ।उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण 2017 18 के आंकड़ों के अनुसार उच्च शिक्षा तक आते-आते नामांकन अनुपात घटकर केवल 25.8% तक रह जाता है यह 25.8% भी जिन विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं इनमें इने- गिने केवल एक-दो संस्थान ही विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में आते हैं। द टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2019 के अनुसार विश्व के सर्वश्रेष्ठ 500 उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत के केवल पांच संस्थान शामिल है ।ऐसे में वैश्विक मानकों की तुलना में शिक्षा की स्थिति कैसी होगी सवतः ही अनुमान लगाया जा सकता है।
प्राथमिक शिक्षा
प्राथमिक शिक्षा पर असर 2018 की रिपोर्ट बताती है कि कक्षा तीन में पढ़ने वाले केवल 27.2 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा दो के अस्तर की पुस्तक पढ़ पाने में सक्षम है कक्षा 5 में पढ़ने वाले 50.3 प्रतिशत विद्यार्थी कक्षा दो की पुस्तक पढ़ पाने में सक्षम है तथा कक्षा आठ में पढ़ने वाले केवल 73% विद्यार्थी कक्षा दो की किताब पढ़ने में सक्षम है।
संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या प्रोस्पेक्टर्स 2019 रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक भारत की जनसंख्या में 273 मिलियन का इजाफा हो जाएगा जो विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि होगी। 2047 तक भारत की जनसंख्या किए अपने चरम पर होगी ।जिसके समग्र लाभ के लिए भारत को युवाओं की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर विशेष रूप से निवेश करना होगा और निश्चित ही इसके लिए एक बेहतर आदतन शिक्षा नीति की आवश्यकता है ।
नई शिक्षा नीति 2019 की प्रमुख सिफारिशें
इस नीति का उद्देश्य वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रमुख चुनौतियों का समाधान सोचना है जिसमें प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा के सभी स्तर शामिल हैं।
विद्यालयी शिक्षा
अभिभावकों तथा शिक्षकों के लिए 3 वर्ष तक के बच्चों हेतु दिशा निर्देश
3 से 8 वर्ष तक के बच्चे के लिए शैक्षिक फ्रेम वर्क का कार्यान्वयन वर्तमान आंगनवाड़ी व्यवस्था में सुधार तथा उसका विस्तार कर और प्राथमिक विद्यालय के साथ उनकी सहस्थापना द्वारा किया जाएगा।
मसौदा नीति में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के दायरे को बढ़ाकर इसमें बचपन की शिक्षा को भी शामिल करने का प्रयास किया गया है साथ ही इसका विस्तार 18 वर्ष तक की शिक्षा के लिए भी किए जाने की अनुशंसा की गई है
विद्यालय शिक्षा प्रणाली ऐसी होगी जिसमें बुनियादी स्तर पर 5 वर्ष (3 वर्ष पूर्व प्राथमिक विद्यालय तथा 2 वर्ष कक्षा 1 तथा दो )3 वर्ष प्रारंभिक विद्यालय के (कक्षा 3 से 5 )3 वर्ष मध्य स्तर के (कक्षा 6 से 8 )तथा 4 वर्ष माध्यमिक शिक्षा स्तर( कक्षा 9 से 12 )के स्वरूप में विभाजित होंगे।
विद्यालय की परीक्षा में सुधार के लिए समिति कक्षा 3 5 तथा 8 में स्टेट सेंसस परीक्षा की सिफारिश करती है
समिति के अनुसार छोटे आकार के विद्यालय में शिक्षक की नियुक्ति तथा जल संसाधन का परिचालन जटिल होता है। इसके लिए समिति कई सरकारी स्कूलों को एक साथ लाकर एक व्यापक स्कूल कंपलेक्स निर्माण की सिफारिश करती है। इसमें एक माध्यमिक विद्यालय होगा तथा सभी अन्य नजदीकी प्राथमिक पूर्व से कक्षा 8 तक के सरकारी विद्यालय होंगे। इस विद्यालय कंपलेक्स में आंगनवाड़ी ,व्यवसायिक शिक्षा सुविधा तथा एक वयस्क शिक्षा केंद्र भी होगा
शिक्षकों के प्रबंधन के लिए समिति किसी विद्यालय कंपलेक्स में एक शिक्षक के कम से कम 5 से 7 वर्ष की नियुक्ति की सिफारिश कर दिया है इसके अलावा शिक्षक विद्यालय समय के दौरान ऐसे किनहीं गैर सरकारी कार्य नहीं करेंगे।बी.एड 4 वर्ष का होगा
उच्च शिक्षा
वर्तमान में उच्च शिक्षा प्रणाली में कई विनियामक निकायों की व्यवस्था है ।जिससे अवरलैपिंग की समस्या आती है इससे समाप्त करने के लिए समिति एक राष्ट्रीय उच्च शिक्षा विनियामक प्राधिकरण के गठन को प्रस्तावित करती है ।समिति राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं मान्यता परिषद को एक उच्च शिक्षण संस्थानों के मूल्यांकन हेतु यूजीसी से अलग एवं शीर्ष संस्था के रूप में गठन की सिफारिश करती है ।उच्च शिक्षा संस्थान में शोध एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए मसौदा नीति में एक स्वायत्त संस्थान के रूप में राष्ट्रीय शोध संस्थान का गठन प्रस्ताव क्या गया है जो भारत में गुणवत्तापूर्ण शोध के वित्तीयन ,सलाह तथा क्षमता निर्माण के लिए उत्तरदाई होगा।
शिक्षा प्रशासन
शिक्षा के सहज प्रशासन के लिए समिति शिक्षा के लिए एक सर्वोच्च निकाय राष्ट्र शिक्षा आयोग के गठन की सिफारिश करती है ।जिसके प्रमुख प्रधानमंत्री होंगे ।इसके अलावा मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने की भी सिफारिश की गई है। इससे मंत्रालय का मूल ध्यान शिक्षा पर केंद्रित हो सके।
शिक्षा का वित्तीयन
मसौदा नई शिक्षा नीति में सार्वजनिक निवेश के रूप में शिक्षा पर खर्च को 6 % करने की सिफारिश की गई है ।वर्तमान में भारत अपनी जीडीपी का केवल 2.7 परसेंट ही शिक्षा पर खर्च करती है जो इसकी व्यापक लड़कों के हिसाब से अत्यंत कम है।
शिक्षा में तकनीक का प्रयोग
शिक्षा प्रणाली में उन्नत तकनीक के प्रयोग हेतु मसौदा शिक्षा नीती में सूचना एवं संचार के जरिए राज्य शिक्षा मिशन की संकल्पना की गई है।
व्यावसायिक शिक्षा
भारत में 19 से 24 आयु वर्ग की श्रम शक्ति में केवल 5% लोग ही व्यवसायिक शिक्षा ग्रहण करते हैं ।जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में यह संख्या 52%, जर्मनी में 75% ,तथा दक्षिण कोरिया में 96% है ।नीति में सभी शैक्षणिक कार्यक्रमों के साथ अनिवार्य रूप से व्यवसायिक शिक्षा के सामान्य करण की सिफारिश की गई है।
शिक्षा तथा भाषा
समिति ने पुराने त्रिभाषा फार्मूले को शिक्षा की सिफारिश की है इसके अनुसार शिक्षण की भाषा का माध्यम कक्षा पांचवी आठवीं तक जैसे संभव हो तो मातृभाषा स्थानीय भाषा में होनी चाहिए।
नीति से संबंधित विवाह तथा चुनौतियां क्या है
कोर समिति में किसी भी शिक्षकों शामिल नहीं किया गया है। शिक्षा के सभी स्तरों पर सुधार हेतु समिति में प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर के एक भी शिक्षक को शामिल नहीं करने से यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह समिति नीति निर्माण में किस प्रकार प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा की जमीनी वास्तविकता और चुनौतियों को सही रूप में संबोधित करेगी।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम ,2009 के अंतर्गत निजी स्कूलों एवं विशेषीकृत विद्यालयों नज़दीकी की कमजोर वर्ग और सुविधा हीन समूह के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा हेतु न्यूनतम 25% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया था प्रस्तावित समृद्धि में इस प्रधान को प्रभावित नहीं बताते हैं उसे स्कूल के लिए बाध्यकारी ना रखकर स्वैच्छिक बनाने की बात की गई है।
त्रिभाषा फार्मूला से प्रश्न उठता है कि एक सामान्य विद्यार्थी को 3 भाषाओं को सीखने के लिए क्यों बाध्य किया जाना चाहिए ।जबकि विद्यालय से निकलने के बाद उसकी कोई विशेष उपयोगिता नहीं रह जाता है ।इतनी उर्जा नई तकनीक और कौशल को सीखने में खर्च करने चाहिए भाषा जो मूल रूप से किसी भी विषय को समझने एवं स्वयं को व्यक्त करने का एक माध्यम भर है को सीखने में इतने उर्जा क्यों खर्च किया जाए।